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About Vidya Bharti

Every nation endeavors to pass on its culture, traditions, values, knowledge, scientific wealth, and intellectual heritage to future generations through education. India’s profound spiritual culture, lifestyle, educational methodology, Indian philosophy, and exemplary ideals, inspired by the all-encompassing values of Vasudhaiva Kutumbakam (the world is one family) and Atmavat Sarvabhuteshu (seeing oneself in all beings), are considered priceless treasures of the world.

During the colonial era, destructive and oppressive policies, along with blind imitation of foreign cultures, dealt a severe blow to India's educational system and created a climate of despair. This led to the future stewards of the nation becoming increasingly unaware of India’s glorious culture and proud history. In such adverse circumstances, there arose a need to awaken national consciousness and develop Indian educational philosophy based on the foundations of Indian life and thought. Vidya Bharati took up the resolve to restore and develop the Indian educational philosophy, rooted in the concept of holistic development of a child, which is inherently spiritual in nature.

Vidya Bharati Akhil Bharatiya Shiksha Sansthan is the educational wing of Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) and is the largest non-governmental educational organization in India. Starting with its first school in Gorakhpur in 1952, Vidya Bharati now operates 12,830 formal schools and 11,353 informal centers, making a total of 24,183 institutions at the primary, secondary, senior secondary, and higher education levels. These institutions serve approximately 3,447,856 students with the support of 150,000 teachers.

Vidya Bharati has accepted the challenge of reforming India’s current education system and is committed to developing an alternative, rooted in a National Education System. Its clear goal is to nurture holistic development based on the concept of life-building, which integrates the body, life-force, mind, intellect, and consciousness into harmony with the collective, ultimately leading towards the supreme. This vision of holistic development encompasses physical, mental, intellectual, and spiritual growth.

To achieve its objectives, Vidya Bharati incorporates core subjects like physical education, yoga, music, Sanskrit, and moral and spiritual education. Through systematic learning, comprehension, practice, and dissemination, it provides education that emphasizes action, experience, thought, wisdom, and a sense of responsibility. The child is the center of our aspirations and the protector of our nation, faith, and culture. The growth of civilization and culture lies in the child’s development. Today’s child is the leader of tomorrow. Keeping the holistic development of the child at the core, Vidya Bharati remains continuously dedicated to its motto: “Sa Vidya Ya Vimuktaye” (Education is that which liberates).

Vidya Bharati has played a significant role in the formulation of the National Education Policy (NEP) 2020, many of its recommendations being incorporated into the policy. Vidya Bharati continues to play a leading role in implementing NEP 2020, providing effective leadership and guidance to the nation’s educational sphere. Parmeshwari Devi Dhanuka Saraswati Vidya Mandir, as a premier institution of Vidya Bharati, is moving forward to add a golden chapter to Vidya Bharati’s illustrious history. This pledge to build a strong national life calls for the collective contribution of us all. Let us move together towards the vision of Ek Bharat, Shreshtha Bharat, Atmanirbhar Bharat, and Akhanda Bharat (One India, Great India, Self-reliant India, and United India). ASSERTIVE ASSURANCE UNIQUE SCHOLASTIC ENVIRONMENT UNWAVERING COMMITMENT VISION ORIENTED MOMENTUM

विद्या भारती.


प्रत्येक देश अपनी संस्कृति, परंपराओं, जीवन मूल्यों, ज्ञान विज्ञान कोष तथा बौद्धिक संपदा को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में भावी पीढ़ी को शिक्षा के माध्यम से सौंपने का प्रयास करता है। भारत की महान आध्यात्मिक संस्कृति, जीवन पद्धति, शिक्षण पद्धति, भारतीय दर्शन, आदर्श जीवन चरित्र जो वसुधैव कुटुंबकम एवं आत्मवत सर्वभूतेषु की सर्वहितकारी भावना से अनुप्राणित हैं, वह विश्व की अमूल्य निधि माने जाते हैं। भारत के परतंत्रता काल में विध्वंसकारी एवं दमनकारी नीतियों तथा विदेशी संस्कृति के अंधानुकरण की प्रवृत्ति ने भारतीय शिक्षण तंत्र को आघात तो पहुंचाया ही, साथ ही देश में एक निराशाजनक वातावरण भी पैदा किया जिसके कारण भारत की महान उज्जवल संस्कृति तथा गौरवपूर्ण इतिहास से राष्ट्र के भावी कर्णधार अनभिज्ञ होने लगे। इन विषम परिस्थितियों में राष्ट्र चेतना को जागृत करने के उद्देश्य से भारतीय जीवन दर्शन के अधिष्ठान पर भारतीय शिक्षा दर्शन के विकास की आवश्यकता प्रतीत हुई। भारतीय शिक्षा दर्शन में बालक के सर्वांगीण विकास की अवधारणा विशुद्ध आध्यात्मिक है जिसे पुनर्स्थापित कर विकसित करने का संकल्प विद्या भारती द्वारा किया गया है।

विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शैक्षिक संगठन है जो देश का सबसे बड़ा गैर सरकारी शिक्षा संस्थान है । 1952 में गोरखपुर में प्रारंभ हुए प्रथम विद्यालय के साथ विद्या भारती वर्तमान में 12830 औपचारिक विद्यालय तथा 11353 अनौपचारिक केंद्र के साथ कुल 24183 प्राथमिक, माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा स्तर पर संचालित करती है जिनमें अध्ययनरत छात्रों की संख्या लगभग 3447856 तथा शिक्षकों की संख्या एक लाख 50 हजार है । विद्या भारती ने देश के शिक्षा क्षेत्र की चुनौती को स्वीकार कर भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन कर उसका विकल्प राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के रूप में विकसित करने का संकल्प लिया है जिसकी पूर्ति हेतु अपना सुस्पष्ट लक्ष्य भी निर्धारित किया है। जीवन निर्माण की संकल्पना जो शरीर, प्राण, मन, बुद्धि तथा चित्त को विकसित कर व्यक्ति का समष्टि के साथ समायोजन फिर उसे परमेष्ठी की ओर अग्रसर करने पर आधारित है, वह सर्वांगीण विकास की अवधारणा को समाहित किए हुए हैं। अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विद्या भारती अपने आधारभूत विषयों शारीरिक, योग, संगीत, संस्कृत, नैतिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा को अंगीकार कर अधीति, बोध, अभ्यास और प्रसार के माध्यम से क्रिया, अनुभव, विचार, विवेक तथा दायित्व बोध आधारित शिक्षा देने हेतु कृत संकल्पित है ।

बालक ही हमारी आशाओं का केंद्र है वही हमारे देश, धर्म और संस्कृति का रक्षक है। उसके विकास में ही हमारी संस्कृति एवं सभ्यता का विकास निहित है। आज का बालक ही कल का कर्णधार है। इस दृष्टि से बालक के सर्वांगीण विकास को केंद्र में रखकर विद्या भारती अपने ध्येय वाक्य सा विद्या या विमुक्तए को सार्थक करने हेतु अनवरत प्रयत्नशील है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के निर्माण में भी विद्या भारती की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है जिसमें विद्या भारती की अनेकों संस्तुतियों को स्थान मिला है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में भी विद्या भारती अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर राष्ट्र के शैक्षिक जगत को कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन प्रदान कर रही है।

परमेश्वरी देवी धानुका सरस्वती विद्या मंदिर विद्या भारती के एक प्रमुख संस्थान के रूप में विद्या भारती के गौरवशाली इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ने हेतु अग्रसर हो रहा है। राष्ट्र जीवन निर्माण का यह संकल्प इस अधिष्ठान में हम सभी की आहुति का भी आह्वान करता है। आइए एक भारत - श्रेष्ठ भारत - आत्मनिर्भर भारत और अखंड भारत की ओर साथ साथ बढ़ चलें।





विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान, भारत की सबसे बड़ी अशासकीय शिक्षा संस्था है. यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शैक्षिक शाखा है. विद्या भारती के बारे में कुछ खास बातेंः

  • विद्या भारती की स्थापना साल 1977 में हुई थी l
  • इसका पूरा नाम - "विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान" है ।
  • विद्या भारती काउद्देश्य–शैक्षिकसंस्थाओंकासंचालनकरनाहैl
  • विद्या भारती काध्येय वाक्य-'सा विद्या या विमुक्तये'इसका मतलब है, 'विद्या वह है जो विमुक्त करे'.
  • इसका पंजीकृत मुख्यालय लखनऊ में है और दिल्ली में इसका कार्यात्मक मुख्यालय है l
  • विद्या भारती के तहत, हज़ारों शिक्षण संस्थान संचालित होते हैं l
  • विद्या भारती के स्कूलों में शिक्षा के सभी स्तरों पर पढ़ाई होती है l
  • विद्या भारती का मकसद समाज के दीन-दुखी और अभावग्रस्त लोगों को शिक्षित करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है l
  • विद्या भारती की शिक्षा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप होती है l

विद्या भारती के पाँच आधारभूत विषय हैं:

  • शारीरिक शिक्षा
  • योग शिक्षा
  • संगीत शिक्षा
  • संस्कृत शिक्षा
  • नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा

विद्या भारती के चार आयाम -

  • संस्कृत बोध परियोजना
  • पूर्व छात्र परिषद
  • विद्वत परिषद
  • शोध

विद्या भारती के द्वारा लगभग हजारों से ज्यादा शिक्षा संस्थान का कार्य कर रहे हैं। विद्या भारती, शिक्षा के सभी स्तरों - प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च पर कार्य कर रही है। इसके अलावा यह शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान करती है। विद्या भारती का अपना शोध विभाग है। विद्या भारती के तहत, हजारों शिक्षण संस्थान संचालित होते है। विद्या भारती -शिशुवाटिका, सरस्वती शिशु मंदिर,सरस्वती विद्या मंदिर, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक, संस्कार केंद्र, एकल विद्यालय, पूर्ण एवं अर्द्ध आवासीय विद्यालय और महाविद्यालयों के छात्रों के लिए शिक्षा प्रदान करता है।विद्या भारती का मुख्य उद्देश्य समाज के दीन दुखी अभाव ग्रस्त,साधन हीं को शिक्षित कर स्वावलंबी बनाना है।





भारत का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन


आज लक्षद्वीप और मिजोरम को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में 86 प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियाँ विद्या भारती से संलग्न हैं। इनके अंतर्गत कुल मिलाकर 30,000 शिक्षण संस्थाओं में 9,00,000 शिक्षकों के मार्गदर्शन में 45 लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा एवं संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इनमें से 49 शिक्षक प्रशिक्षक संस्थान एवं महाविद्यालय, 2353 माध्यमिक एवं 923 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, 633 पूर्व प्राथमिक एवं 5312 प्राथमिक, 4164 उच्च प्राथमिक एवं 6127 एकल शिक्षक विद्यालय तथा 3679 संस्कार केंद्र हैं। आज नगरों और ग्रामों में, वनवासी और पर्वतीय क्षेत्रों में झुग्गी-झोंपड़ियों में, शिशु वाटिकाएं, शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, सरस्वती विद्यालय, उच्चतर शिक्षा संस्थान, शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र और शोध संस्थान हैं। इन सरस्वती मंदिरों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और आज विद्या भारती भारत में सबसे बड़ा गैर सरकारी शिक्षा संगठन बन चुका है।

इतिहास


1952 में संघ प्रेरणा से कुछ निष्ठावान लोग शिक्षा के पुनीत कार्य में जुटे। राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में लगे लोगों ने नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए1952 में नानाजी देशमुख द्वारा गोरखपुर में पहले"सरस्वती शिशु मंदिर" की आधारशिला पांच रुपये मासिक किराये के भवन में पक्की बाग़ में रखकर प्रथम शिशु मंदिर की स्थापना से श्रीगणेश किया। इससे पूर्व कुरुक्षेत्र मे गीता विद्यालय, की स्थापना 1946 में हो चुकी थी।उत्तर प्रदेश में शिशु मंदिरों के संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी। इनके मार्गदर्शन एवं समुचित विकास के लिए 1958 में 'शिशु शिक्षा प्रबंध समिति' नाम से प्रदेश समिति का गठन किया गया। सरस्वती शिशु मंदिरों को सुशिक्षा एवं सद्संस्कारों के केन्द्रों के रूप में समाज में प्रतिष्ठा एवं लोकप्रियता प्राप्त होने लगी। अन्य प्रदेशों में भी जब विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी तो उन प्रदेशों में भी प्रदेश समितियों का गठन हुआ। पंजाब एवं चंडीगढ़ में सर्वहितकारी शिक्षा समिति, हरियाणा में हिन्दू शिक्षा समिति, असम में शिशु शिक्षा समिति बनी। इसी प्रयत्न ने 1977 में अखिल भारतीय स्वरुप लिया और विद्या भारती संस्था का प्रादुर्भाव दिल्ली में हुआ। इसके बाद सभी प्रदेश समितियां विद्या भारती से सम्बद्ध हो गईं।


केन्द्रीय विषय


  • संस्कृत शिक्षा
  • विज्ञान एवं तकनीकी
  • शिशु वाटिका
  • योग शिक्षा
  • वैदिक गणित
  • नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा
  • कौशल विकास
  • संगीत शिक्षा
  • खेलकूद
  • बालिका शिक्षा
  • ग्रामीण शिक्षा
  • प्रारम्भिक शिक्षा
  • विद्वत परिषद
  • जनजाति क्षेत्र की शिक्षा
  • संस्कृति बोध परियोजना
  • आचार्य प्रशिक्षण
  • सेवा
  • प्रचार विभाग

पंचपदी शिक्षण पद्धति


स्वामी विवेकानन्द के अनुसार ”मनुष्य के भीतर समस्त ज्ञान अवस्थित है, जरूरत है उसे जागृत करने के लिए उपयुक्त वातावरण निर्मित करने की” शिक्षा की इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विद्यालय में शिक्षण भारतीय मनोविज्ञान के सिध्दान्तो पर आधारित पंचपदी शिक्षा पद्दति के द्वारा किया है।

  1. अधीति - इसके अंतर्गत आचार्य निर्धारित विषय वास्तु को विधियों को अपनाते हुए छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं।
  2. बोध - कक्षा कक्ष में ही पठित विषय वास्तु का तात्कालिक लिखित, मौखिक और प्रायोगिक अभ्यास कराया जाता है, जिससे छात्रों को अपने अधिगम का ज्ञान होता है।
  3. अभ्यास - कक्षा कक्ष में सम्पन्न होने वाली अधीती और बोध की प्रक्रिया के पश्चात् छात्रो को विषय वास्तु का ज्ञान विस्तृत और स्थायी करने हेतु गृहकार्य दिया जाता है, जिसका विधिवत निरिक्षण और मूल्याङ्कन किया जाता है।
  4. प्रयोग - (स्वाध्याय) – छात्र स्वप्रेरणा से अपने अनुसार कार्य करने में आनन्द अनुभव करता है, इसलिए विभिन्न विषयों से सम्बंधित विविध पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदि सामग्री का अध्ययन कराया जाता है।
  5. प्रसार - छात्र अपने अर्जित ज्ञान का विस्तार व प्रसार करते हैं।

प्रकाशित पत्रिकायें


  • विद्या भारती प्रदीपिका
  • देवपुत्र
  • शिशुमंदिर संदेश
  • उत्सर्ग पत्रिका